"वास्तुशास्त्र" थोड़ी सी सावधानी से जिन्दगी भर आसानी !


मॉरिशस के योन्टागन क्षेत्र में मेरे एक मित्र रहते थे, जिनके यहां मेरा जाना हुआ। उनके एक मित्र श्री पुरून्जा जी भी वहां आये हुए थे। उन्होंने मुझे अपने घर का वास्तु निरीक्षण करने हेतु बुलवाया। उनका घर दक्षिण मुखी था तथा मुख्य दरवाजा दक्षिण-पूरब की ओर था। उनका शयन कक्ष नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) कोने में था। इससे स्वास्थ तो अच्छा रहता ही है, साथ ही सम्मान पूर्ण जीवन जीने के साधन भी बढते है।


उनके घर में सबसे कष्टदायक स्थिति उनकी बोंरिग नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में होना था। इस कारण धन की कमी होने के साथ-साथ बीमारी से सभी सदस्य प्रभावित रहते हैं। इससे आयु की भी हानि हो सकती है तथा व्यक्ति आत्महत्या करने का भी मन बना सकता है। उनकी रसोई पूरव से उत्तर की ओर बढ़ती हुई थी, जो पुरुषों को क्रोधी स्वभाव का बनाती है। उनका बरामदा आग्नेय (दक्षिण-पूरब) में था, जिस कारण महिलाओं में मानसिक संताप तथा शारीरिक पीड़ा होने की संभावना रहती है। उनका शौचालय ईशान (उत्तर-पूरब) क्षेत्र में था, जिस कारण शारीरिक तथा मानसिक कष्ट भी होते हैं। इससे संतान के कैरियर पर भी पूर्ण विराम लग जाता है। उनका पूजन कक्ष पश्चिम में था, जिससे कोई विशेष हानि तो नहीं होती, लेकिन जो साकारात्मक ऊर्जा मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल पा रही थी। दो वर्ष बीत गए। किसी कारण वे उन दोषों में सुधार नहीं करा सके। मेरे बताये दुष्प्रभाव समय-समय पर उन पर पड़ते रहें, जिनकी वह अनदेखी करते रहे। एक दुखद घटना ने उन्हें हिला दिया। नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) में उनकी बोरिंग तथा ईशान (उत्तर-पूरब) में शौचालय से होने वाली जीवन की हानि के बारे में भी मैंने बताया था।


श्री पुरून्जा जी से पन्द्रह साल छोटा उनका एक भाई था। उसे वे बेटे के समान प्यार करते थे। कछ वर्ष पर्व उसका धूमधाम से विवाह किया था। पर, न जाने क्यों उसने आत्महत्या कर ली। पहले बतायी गई बातें एक-एक कर उन्हें याद आने लगीं। उन्होंने वहां आने का आग्रह भरा निमंत्रण दिया।


मैंने सर्वप्रथम जल आगमन का स्थान नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) से हटाकर ईशान (उत्तर-पूरब) क्षेत्र मे करने को कहा तथा वहाँ के छेद को मिट्टी आदि से पूर्णतया भरवाने को कहा। ईशान (उत्तर-पूरब) क्षेत्र का शौचालय वहां से हटवाकर वायव्य में करने को कहा। उनकी रसोई आग्नेय (दक्षिण-पूरब) में स्थित बरामदे में बनवा दी। यह रसोई की सर्वोत्तम स्थिति है। इससे धनोपार्जन तो अच्छा होता ही है, इस क्षेत्र में बने खाने से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। ईशान (उत्तर-पूरब) के शौचालय को खुलवाकर बरामदा निर्मित करवाने को कहा, क्योंकि इस क्षेत्र का बरामदा प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के साथ धनवैभव में भी वृद्धि करता है। पहले की रसोई को पूजन कक्ष में परिवर्तित करा दिया, क्योंकि यह स्थान धन, सम्मान बढ़ाने वाला तथा संतान सुख की प्राप्ति देने वाला होता है। पूजन कक्ष को अध्ययन कक्ष में परिवर्तित करवाया, क्योंकि वहां अध्ययन करने से एकाग्रता आती है। इन परिवर्तनों से उनकी मुश्किलें दूर होती गईं और आज उनके घर खुशियां ही खुशियां हैं।