वास्तु के अनुसार शयन कक्ष कहाँ हो!


• दक्षिण दिशा की ओर दरवाजे खिड़की, टॉयलेट, बाथरूम, पूजा, कई दरवाजों की सीध, गैलरी और गली के द्वार वेध की तरफ पैर करके सोने से व्यक्ति अस्वस्थ रहता है और मौत की काली छाया उस पर मंडराती रहती है।


• गली की सीध में दरवाजे की ओर पैर करके सोने से बीमारी आती है। इस अवस्था में नहीं सोना चाहिए। अग्निकोण में भी गृहस्वामी का शयनकक्ष नहीं होना चाहिए। इससे व्यापार ठप हो जाता है।


• गृहस्वामी के लिए दक्षिण-पूर्व में सोना ठीक नहीं होता है। दक्षिण-पूर्व अग्नि का क्षेत्र होता है और अग्नि क्षेत्र धन-दौलत में वृद्धि करने वाला क्षेत्र है। गृहस्वामी यदि अग्नि क्षेत्र में सोता है तो लक्ष्मी गेंद की तरह घर से भाग जाती है।


• शयनकक्ष का तिरछा दरवाजा आत्महत्या और चिंता का कारण बनता है।। दक्षिण या पश्चिम की ओर टॉयलेट बढ़ा हुआ है तो यह स्थिति शुभ नहीं होती है। टॉयलेट या बाथरूम की ओर पांव रखने से मानसिक बीमारियां पैदा हो जाती हैं।


• पूजा, रसोई, स्टोर, बाथरूम, टॉयलेट, दरवाजे, खिड़की, रोशनदान की तरफ पैर करने से प्राणिक ऊर्जा पैदा नहीं होती है, जिससे उम्र घटती है। मानसिक थकान में वृद्धि होती है।


• नवदम्पती को उत्तर-पश्चिम में ही सोना चाहिए। यहां उन्हें अधिक आनंद की प्राप्ति होती है। परिवार के दूसरे लोगों के लिए यह शयनकक्ष श्रेष्ठ नहीं होता है।