बुजुर्ग हैं जीवन के पथ-प्रदर्शक


वृद्धावस्था में व्यक्ति अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में होता है। जहां पर जीवन के वह अनेक रंग देख चुका होता है। वास्तव में भारत जैसे देश में सामाजिक परंपरा के तहत बुजुर्गो को सम्मान दिया जाता है एवं हर बात में उनकी सलाह ली जाती है पर वक्त के साथ कुछ न कुछ बदलाव तो आता है। वृद्धावस्था में आज आकर असहज महसूस करते हैं। कारण स्पष्ट है कि उनके परिवार के सदस्य उन्हें अंगीकार नहीं कर पाते हैं। वे उन्हें बोझ के रूप में दिखाई देते हैं। क्यों, कारण स्पष्ट है कि विचारों का अभाव एक अतिरेक रूपेण बढ़ते गतिरोध जो नई पीढ़ी को वर्तमान माया मोह में डूबा हुआ होता है। उसे असली सत्य नहीं दिखाई देता है कि हर व्यक्ति एक दिन वृद्धावस्था का तिरस्कार करने का प्रयास करता है। यह भ्रम ही आज सबसे बड़ा सामाजिक नासूर बनकर, देश समाज के सामने खड़ा है?
आज हम देश के किसी भी धर्म एवं जाति में झांककर देख लें, हमें यह वास्तविक सच्चाई स्पष्ट 
दिखायी देती है। ऐसी स्थिति में बुजुर्ग क्लबों का बनना, उन्हें खुशियां देना, सुकूनदायक तो लगता है। अपितु उन वृद्धों के प्रति कर्तव्य बोध को भी जगाता है। जो हम भूलते जा रहे हैं। हमें एहसास होता है कि हमें बुजुर्गों का तिरस्कार नहीं उनसे प्यार करना चाहिए। अपनापन का माहौल अगर हमें मिले तो बुजुर्ग व्यक्ति हमारे मार्ग प्रदर्शक बन सकते हैं क्योंकि उनके पास जीवन का लंबा अनुभव होता है इसलिए भौतिकता के इस दौर में जिसमें सब कुछ भागदौड़ भरा है। प्रत्येक व्यक्ति इतनी रफ्तार से बढ़ता है। जहां पर ब्रेक लगने का कोई अर्थ ही नहीं रहता है। वहां बुजुर्गो के प्रति सम्मान-प्यार बहुत पीछे रह जाते हैं ऐसी स्थिति की रोकथाम इस तरह बुजुर्गो के प्रति उनके सम्मान के प्रति तभी हो सकती हैं जब हम ये जान लें कि हमारा प्रदर्शक ये बन सकते हैं। हमारी सुरक्षा के लिए हैं और एक दिन इस अवस्था में हमको भी पहुंचना है। तो हम समझते हैं बुजुर्ग तो क्या इस देश की तकदीर भी बदल सकते हैं।