देवताओं की प्रार्थना पर दधीचि ने देह-त्याग किया, तो उनकी अस्थियां लेकर विश्वकर्मा ने वज्र बनाया। उसी वज्र से वृत्रासुर को इंद्र ने मारा और स्वर्ग पर पुनः अधिकार किया। इसके बारे में जब माता सुवर्चा से बालक पिप्पलाद ने सुना, तो उसे देवताओं पर बड़ा क्रोध आया। वह गौतमी के किनारे तपस्या करने लगा। तपस्या करते हुए जब उसे काफी समय बीत गया, तो भगवान शंकर उससे प्रसन्न हुए। उन्होंने पिप्पलाद से कहा, बेटे! तुम मुझसे वर मांगो। पिप्पलाद ने कहा, प्रभु, आप अपना तीसरा नेत्र खोले और देवताओं को भस्म कर दें। भगवान शिव ने समझाया, मेरे तृतीय नेत्र के तेज का आह्वान मत करो, इससे विश्व भस्म हो जायेगा। पिप्पलाद ने कहा, प्रभो! देवताओं और इस विश्व के प्रति मुझे तनिक भी मोह नहीं है। आप देवताओं को भस्म कर दें, भले विश्व भी उनके साथ भस्म हो जाए। मंगलमय आशुतोष ने हंसते हुए कहा, तुम पहले मेरे रौद्र-रूप का दर्शन करो। पिप्पलाद ने कपालमाली, विरूपाक्ष, त्रिलोचन, अहिभूषण भगवान रूद्र का दर्शन किया। उस ज्वालामय प्रचंड स्वरूप से पिप्पलाद को लगा कि उनका रोम-रोम भस्म हुआ जा रहा है। उसने फिर भगवान शंकर को पुकारा और कहा, मैंने तो आपसे देवताओं को भस्म करने की प्रार्थना की थी, आप मुझे ही भस्म करने लगे। भगवान शिव ने कहा, विनाश भले ही किसी एक स्थल से शुरू होता है, लेकिन वह वहीं तक सीमित नहीं रहता। तुम्हारे हाथ के देवता इंद्र हैं, नेत्र के सूर्य, नासिका के अश्विनीकुमार, मन के चन्द्रमा इसी प्रकार प्रत्येक इंद्रिय तथा अंग के अपने-अपने देवता हैं। उन देवताओं को नष्ट करने से शरीर कैसे बचा रहेगा। पिप्पलाद ने भगवान के चरणों में मस्तक झुका दिया।