विचारो को पकड़ना सीखें !

हर किसी के दिमाग में विचार झरते रहते है। मगर इनमें से ज्यादातर अपना अस्तित्व खो देते हैं। कुछ ही हैं, जो फलीभूत होते हैं और हमारी पहचान बनते हैं। विचारों की तुलना वैसे पेड़ों से की गई है, जिसके फल गिरते रहते हैं, पर इन फलों मे से एक-दो ही पौधे के रूप में ढल पाते हैं। ज्यादातर बीजों को  गिलहरियां या इस जैसे अन्य जीव खा जाते हैं या कठोर सतह पर वे उग नहीं पाते।


यह बात सौ फीसदी खरी है कि विचार नश्वर है। यह नष्ट होता रहता है, बशर्ते् कि हम इसें मुट्ठी में कैद न कर लें। मुट्ठी में कैद होते ही उसका कोई मोल नहीं रहता। अभिनेता-रंगकर्मी अनुपम खेर कहते हैं कि मैने इस सच को जीवन में उतार लिया है। वह बताते हैं, मेरे मन पर एक नाटक के उस सीन ने गहरा असर किया, जिसमें रावण मृत्युशय्या पर हैं और राम-लक्षमण उनसे कोई शिक्षा देने का आग्रह करते हैं। इस पर रावण कहते हैं, 'बस एक बात कहूं कि मन में कोई अच्छा विचार आए, तो उस पर फौरन अमल करो।'


विख्यात अफ्रीकी लेखिका एलिसा वॉकर कहती हैं कि विद्वता कुछ और नहीं,  अपने विचारों को पकड़ने और उसके दोहन की काबिलियत  है। दोहन यानी उसकी देखभाल,  उसे पल्लवित-पुष्पित करना और उससे वह हासिल करना, जो मानवता के लिए जरूरी है। दुनिया में कोई ऐसा नहीं, जिसके पास विचार न हो, फिर भी विचारक गिने-चुने ही होते हैं। सच यह है कि ज्यादातर इसे मुट्ठी में कैद नहीं करते, इसके विभिन्न पहलुओं की जांच नहीं करते, इससे सब चीजों का अध्ययन नहीं करते। ऐसे लोग आम के आम बने रह जाते है, कभी खास नहीं बन पाते।