कहीं सोच तो आपको बूढ़ा नहीं बना रही??






हर दिन गुजरने के साथ उम्र तो बढ़ेगी ही। समय के साथ शरीर बूढ़ा होना ही है। ऐसा सबके साथ ही होता है। पर, सोच का बुढ़ापा तो असमय ही बूढ़ा बना देता है। और इससे बचना हमारे हाथ में है।


खूबसूरत जिंदगी:


हम में से बहुत से लोग उम्रदराज होने या दिखने से डरते हैं। जब हमें उम्र बढ़ती दिखती है, तो हम जीवन की इस सहज प्रक्रिया को अनाकर्षक और लगभग तकलीफदेह बना लेते हैं। अगर मन में यह डर है कि हम कहीं बूढ़े न हो जाएं, तो हम अपने भीतर के बच्चे या बचपन को किसी भी उम्र में स्वीकार नहीं करते। एक तरह का अस्वीकार नहीं करते। एक तरह का अस्वीकार मन में चलता रहता है। अगर अपने आपको ही स्वीकार करने से इनकार कर दें, तो फिर हम अपने जीवन के अगले पड़ाव को कैसे स्वीकार करेंगे, जो एक न एक दिन आयेगा ही?


अपने समय पर बूढ़ा होना तो एक सच है। इसके अलावा और क्या हो सकता है? आपको यह धरती छोड़नी ही है, पर हमारे समाज का वातावरण कुछ ऐसा बन गया है कि हम 'युवावस्था' को ही प्राथमिकता देते है। अपने आप में यह अच्छी बात है कि हम किसी खास उम्र में अपने आपको पसंद करते हैं, पर हम अपने आपको तब पसंद क्यों नहीं कर सकते, जब बूढ़े होने लगें? हमें जीवन के हर पड़ाव से गुजरना होता है और जीवन का हरचरण खूबसूरत है। उम्र का हर दौर एक नया रोमांचकारी अनुभव है।


बढ़ती उम्र के साथ-साथ रहे स्वस्थ और प्रसन्न:


हमें इतना बीमार होने की आवश्यकता नहीं है कि मरणासन्न हो जाएं या मशीनों पर जीवन बीतने लगे। हमें किसी नर्सिंग होम में तकलीफ भरा जीवन बीताते हुए मौत का इंतजार करने की आवश्यकता भी नहीं है। ऐसा भला क्यों हो हमारे साथ! जीवन में जीवंतता अंत तक रहे, इसके लिए जरूरी है कि खुद से प्यार करें। खुद को स्वीकार करें। मेरी इस सलाह को टालने के स्थान पर तुरन्त सक्रिय हों और अपने ऊपर काम करें। उम्र जब बढ़ने लगे, तो हम और बेहतर महसूस करना चाहते हैं, ताकि जीवन में नया रोमांच हो, नए अनुभव हमें मिलें। हम युवा रह सके। जैसा कि मेरा मित्र डा. क्रिस्टीन नाॅर्थरप कहती हैं, 'आपकी अनुवंशिकता आपकी नियति तय करें, यह जरूरी नहीं है।' यानी बहुत कुछ आपके हाथ में है और यह सोच कर ही कितना अच्छा लगता है।


उम्र से पहले वृद्धावस्था आपके विचारों पर निर्भर करती है:


हाल ही में मुझे कुछ ऐसा पढ़ने का मौका मिला, तो मेरे मन में गहरे पैठ गया है। यह सैन फ्राॅसिस्को मेडिकल स्कूल की रिपोर्ट थी, जिसमें बताया गया था हम बूढ़े कैसे होते है, यह हमारी आनुवंशिकता तय नहीं करती, बल्कि हमारे मस्तिष्क में काम कर रही घड़ी है, जो उम्र का एहसास कराती है। यह घड़ी ही इस बात की निगरानी करती है कि हम कब और कैसे बूढ़े होंगे। यह घड़ी एक महत्वपूर्ण कारक से संचालित होती है और वह कारक है बूढ़े होने के प्रति हमारा रवैया। जैसे, अगर आप यह मानते है कि 35 वर्ष की आयु आते-आते व्यक्ति मध्य वय को पहुंच जाता है, तो आपका यह विश्वास शरीर को प्रभावित करेगा और 35 वर्ष के आसपास आपकी आयु तेजी से बढ़ने लगेगी। यह दिलचस्प है। कहीं न कहीं हम खुद ही तय करते हैं कि हमारी 'मध्य वय' क्या है और 'वृद्धावस्था' क्या है।


आप अपने लिए वृद्धावस्था प्रारंभ होने का बिदु कहां तय करेंगे?:


मैंने अपने लिए अपनी जो तस्वीर बनाई है, उसमें में 96 वर्ष तक जीवित और सक्रिय रहने वाला हूँ। यानी इसके लिए आवश्यक है कि मैं स्वयं को स्वस्थ रखूं। यह भी याद रखें कि जो हम देते हैं, वहीं हमें वापस मिलता है। इस बात का ध्यान रखें कि आप बूढ़े लोगों से कैसा व्यवहार कर रहे हैं। क्योंकि आप जब उस उम्र तक पहुंचेगे, आपको भी वही व्यवहार मिलेगा। अगर आपके मन में वृद्ध लोगों के प्रति खास तरह की अवधारणाएं हैं, तो आपका खुद का अवचेतन आपको वहीं ले जायेगा। जीवन व अपने प्रति हमारे विश्वास, हमारी अवधारणायें व हमारे विचार अंत में हमारे लिये सच साबित होते है।