गुरू भक्त बालक आरुणि की परीक्षा !

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ऋषि धौम्य ने नवागत शिष्य आरुणि की प्रथम दिन ही कठोर परीक्षा ली। उस दिन मूसलाधार बारिश हो रही था। गुरु ने शिष्य से कहा- बेटा आरुणि! बारिश में कहीं खेत की मेड टूट न गई हो। सब पानी निकल जाएगा। तुम जाओ और देखो तो जरा। मेड़ टूट गई हो तो बाँध आना।
आरुणि तत्काल उठा। सचमुच खेत की मेड टूट गई थी। पानी का बहाव बहत तेज था। सब उपाय कर देखे, परंतु मेड़ रुकी नहीं। अब कोई उपाय न देख आरुणि स्वयं उस स्थान पर लेट गया। इस प्रकार पानी के रोके रहने में उसे सफलता मिल गई।
बहुत रात बीतने तक भी वह वहीं लेटा रहा। आश्रम न लौटा तो ऋषि को चिंता हुई। वे उसे खोजने खेत पर चल दिए। देखा तो छात्र पानी को रोके मेड़ के पास बेहोश पड़ा है। देखते ही गुरु की आँखें भर आई। उन्होंने शिष्य को कंधे पर उठाया तथा आश्रम की ओर चल दिए।
उपचार-परिचर्या के बाद आरुणि ठीक हुआ तो ऋषि ने अपने तपोबल के प्रभाव से उसे जीवन विद्या में पारंगत बना दिया।
शिष्य उपमन्यु को गायें चराते हुए अध्ययन करते रहने की आज्ञा दी। पर उसके भोजन का कुछ प्रबंध न किया और देखना चाहा कि देखें वह किस प्रकार अपना काम चलाता है। छात्र भिक्षा माँगकर भोजन करने लगा। वह भी न मिलने पर गौओं का दूध दुहकर अपना काम चलाने लगा।
धौम्य ने कहा-बेटा उपमन्यु! छात्र के लिए उचित है कि आश्रम के नियमों का पालन करे और गुरु की आज्ञा बिना कोई कार्य न करे। छात्र ने अपनी भूल स्वीकार की और कहा- भविष्य में भूखा रहना तो बात क्या है, प्राण जाने का अवसर आने पर भी आश्रम की व्यवस्था का पालन करूँगा। उसने कई दिन निराहार होकर बहुत दुर्बल हो जाने तक अपनी इस निष्ठा की परीक्षा भी दी। निष्ठा की संपदा कमा कर वह महान बना।