दान का महत्व (बोध कथा)


दान देना परोपकारिता का प्रतीक है। बहुत से लोग हैं जो अपनी आय का कुछ न कुछ अंश नियमित रूप से परहित में व्यय करते हैं। इससे उन लोगों की आवश्यकताएं पूरी होती है जो किसी न किसी कारणवश स्वयं उनकी पूर्ति में अक्षम होते है। दान प्राप्ति से लोगों की तात्कालिक या विशेष आवश्यकताएं पूरी हो जाती हैं, किंतु प्रायः जीवन की उलझनें बनी ही रहती हैं। मनुष्य की सबसे बड़ी सहायता उसे जीवन बदलने योग्य बनाना है। उसमें उन गुणों और क्षमताओं का विकास हो जिससे वह स्वयं अपनी आवश्यकताएं पूरी कर सके। जीवन में प्रेम, दया, सेवा, संतोष, संवर्ग और सहजता आदि गुणों का महत्व धन, संपत्ति, पद, प्रतिष्ठा से कहीं अधिक है। यदि ये मूलगुण मनुष्य के स्वभाव का भाग बन जाएं तो उसका जीवन सुख से भर जाता है। यदि देना है तो मनुष्य को गुणों का दान दें। किसी को सद्गुणों और सदाचरण के लिए प्रेरित करने से बढ़कर कोई उपकार नहीं है। महापुरूषों ने समय-समय पर अपने गुणों और आचरण से ऐसे आदर्श स्थापित किए जिन्होंने समाज का परिदृश्य बदल दिया। ईश्वर ने सारे मनुष्यों को समान अंतस चेतना प्रदान की है। आवश्यकता होती है, इसे जाग्रत करने की। माया के जाल में फंसकर अधिकांश मनुष्य जीवन के लक्ष्य से भटक जाते है। संसार के भ्रम से उबर सकना सरल नहीं होता। इसके लिए कोई प्रेरणा कोई आदर्श वांछित होता है। भ्रमित मनुष्य के सामने सांसारिक मायाजाल के अंधेरे से निकालने के लिए सत्य के उज्जवल स्वरूप को प्रकट करना होता है। जब प्रकाश सामने होता है तभी अंधेरे का बोध होता है। सच को जान लेना ही पर्याप्त नहीं होता उस पर विश्वास भी आवश्यक होता है। मनुष्य के अंदर सदगुण जैसे दृढ़ होते जाते हैं वैसे-वैसे सच और परमात्मा के प्रति विश्वास बढ़ता जाता है।
यदि किसी को कुछ देना है तो उसे गुणों की प्रेरणा दें, उसे सच के उजाले का उपहार दें। इसके लिए स्वयं का श्रेष्ठ व्यवहार समाज के सामने रखें और गुणों को आचरण में सिद्ध कर के दिखाएं। बहुत से लोग हैं जो विकारों, अवगुणों से निकलना चाहते हैं। उन्हें अवसर और राह चाहिए। जो यह अवसर और राह देने में समर्थ है उससे बड़ा दानदाता संसार में और कोई नहीं।