अति लोभो न कर्तव्य (बोध कथा)


एक व्यक्ति ने एक जिन्न साधा और वशवर्ती कर लिया । छोड़ने की शर्त यह तय हुई, कि जिस दिन उसका सूखा कुआँ भर जायेगा, उसी क्षण उसे मुक्त कर दिया जायेगा । जिन ने अपनी शक्ति द्वारा उसे जल्द ही भर दिया ।


व्यक्ति लालची था । उसने हाथ आये अवसर का भरपूर लाभ उठाना चाहा,


कहा-हमारा कोठार अभी खाली है, जब अन्न से वह भर जायेगा, तो तुम्हें छोड़ देंगे।


जिन्न अड़ गया, कहा-बात सिर्फ कुएँ की थी, सो शर्त के अनुसार उसे पूरी कर दी । अब मैं स्वतंत्र हूँ, पर व्यक्ति नहीं माना, कहा-मनोरथ-पूर्ति से पहले मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं ।


जिन बोला-मैं पहले भी स्वतंत्र था, अब भी स्वतंत्र हूँ। तुमने कभी मुझे अपने काबू में किया ही नहीं | वह तो मैं था कि तंत्र की गरिमा रखने के लिए स्वयं को तुम्हारे सुपुर्द कर दिया, पर अब तुम लोभवश मेरा दुरुपयोग करना चाहते हो, अतः इसका दण्ड भी अब तुम्हें मिलकर रहेगा। इतना कहकर उसने तांत्रिक का गला दबोच लिया और तत्काल यमलोक पहुंचा दिया ।


जाते-जाते जिन्न ने एक व्यंग भरा अट्टहास किया और उसकी - आत्मा से कहा "लालच बुरी बला है "