सभी ठाठ तज जाना होगा------(संस्मरण)


महर्षि व्यास के पुत्र शुकदेव ने किसी पहुंचे हुए शास्त्रज्ञ से ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की। पिता ने उन्हें राजा जनक के पास भेज दिया। शुकदेव जी महाराज जनक के राजमहल पहुंचे। उन्हें लगा कि ऐश्वर्य से घिरे जनक क्या उपदेश देंगे। वह निराश होकर लौटने वाले थे कि जनक ने उन्हें बुलवाया और कहा, धर्म चर्चा हम महल में नहीं, पास स्थित सत्संग भवन में करेंगे। वहां पहुंचकर उन्होंने शुकदेव से आत्मा-परमात्मा संबंधी बातचीत शुरू कर दी। अचानक कुछ राज कर्मचारियों ने उन्हें सूचना दी कि महल के एक कक्ष में आग लग गई है। राजा जनक ने शांत भाव से कहा, मैं इस समय मुनि के साथ ईश्वर संबंधी बातचीत कर रहा हूं। देखते-देखत आग की लपटें सत्संग भवन तक पहुंच गयी। राजा जनक आग देखकर भी बैचेन नहीं हुए, किन्तु शुकदेव अपनी पुस्तकें उठाकर कक्ष से बाहर निकल आये। उन्होंने देखा कि राजा जनक को कोई चिंता नहीं थी। वह निश्चित हो ईश्वर चिंतन में लगे रहे। कुछ देर बाद महाराज जनक ने शुकदेव जी से कहा, दुःख का मूल संपत्ति नहीं, संपत्ति में आसक्ति है। संसार में हमें केवल वस्तुओं के उपयोग का अधिकार दिया गया है। अक्षय संपत्ति के स्वामी और निर्धन, दोनों की मृत्यु के समय सब कुछ यहीं छोड़कर जाना होता है। इसलिए नाशवान धन-सम्पत्ति के प्रति अधिक आसक्ति अधर्म है।


-संकलन-संजय कुमार गर्ग