वास्तुनुसार भवन की आंतरिक बनावट कैसी हो?


भवन की आंतरिक बनावट उसकी सजावट अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान रखती है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति भवन के आंतरिक हिस्सों को ही अधिकतर उपयोग करता है। भवन के आंतरिक हिस्से हो व्यक्ति को उसमें निवास अथवा शरण देते हैं। व्यक्ति अपने दैनिक उपभोग की वस्तुएं और मूल्यवान वस्तुओं को भी भवन के आंतरिक हिस्सों में ही रखता है। निवास और अन्य वस्तुओं को रखने के लिए भी कक्ष भवन के आंतरिक क्षेत्रों में ही निर्धारित किये जाते हैं। जलवायु के बदलते हुये प्रकोप से बचने के लिए व्यक्ति भवन का आंतरिक हिस्सा ही प्रयोग करता है। व्यक्ति के अधिकतर गोपनीय कार्य भी भवन के आंतरिक हिस्सों में ही किए जाते हैं, इसलिये भवन का आंतरिक क्षेत्र ही वास्तव में महत्वपूर्ण क्षेत्र है। भारतीय वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन की आंतरिक साज-सज्जा को भी अगर वास्तुनुरूप किया जाए, तो भवन सामान्य श्रेणी से निकलकर महत्वपूर्ण भवनों की श्रेणी में आ जाता है। वास्तुशास्त्र का भवन की आंतरिक बनावट व सजावट में भी काफी योगदान है, भवन में रंगों का प्रयोग, उसमें निर्धारित स्थानों पर रखी गई वस्तुओं. दिशाओं विदिशाओं से सामंजस्य, आंतरिक स्थानों में निवास के लिये निर्धारित स्थान आदि में भारतीय वास्तुशास्त्र का काफी योगदान है क्योकि भवन में रखी हुयी वस्तुएं भी ऊर्जा का स्रोत होती हैं अतः उनको निर्धारित स्थानों में ही रखने से उनका पूर्ण रूपेण लाभ उठाया जा सकता है।


जैसा कि वास्तुशास्त्र में बताया गया है। उसके अनुसार प्रत्येक भवन के पूर्व उत्तर अर्थात ईशान कोण में भारी वस्तुएं नहीं रखनी चाहिए भारी वस्तुओं का भवन के दक्षिण पश्चिम अर्थात नैऋत्य कोण में ही रखना चाहिए इसके अतिरिक्त भारी वस्तुओं को भवन के दक्षिण में भी रख सकते हैं। हमेशा अत्याधिक हल्की वस्तुओं को भवन के ईशान कोण में रखना चाहिए। डरावनी व अशुभ वस्तुओं से भवन की सजावट नहीं करनी चाहिए, इसका बच्चों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। भवन की सजावट में अश्लील चित्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, सिर्फ धार्मिक प्रेरणादायक चित्रों को ही भवन की सजावट में प्रयोग करना चाहिए। क्योंकि चित्रों व वस्तुओं का भवन में निवास करने वाले व्यक्तियों विशेषकर बच्चों पर अत्याधिक प्रभाव पड़ता है। भवन में हमेशा हल्के पवित्रता प्रदान करने वाले रंगों का प्रयोग करना चाहिए। भड़काऊ रंगों से बचना चाहिए। हर्ष व उल्लास के रंगों का प्रयोग करना चाहिए। कुबेर और लक्ष्मी जी के चित्र का प्रयोग भवनों के कक्ष में करना चाहिए।