तनाव अपना साथी है।


आपने कभी अपने दादा-परदादा को तनाव ग्रस्त देखा है? नहीं, क्योंकि उन दिनों तनाव नाम की बीमारी थी ही नहीं। जबकि सारे काम लोग खुद करते थे, कोई यंत्र नहीं थे। फिर भी उन्हें तनाव नहीं होता था। तनाव बीसवी सदी की देन है। 1930 के दशक में तनाव को खोजा दो आस्ट्रियन मेडिकल छात्रों ने-वाॅल्टर कैनन और हेन्स सेएल। सैएल ने जब देखा कि उनके पास एक ही किस्म के मरीज आ रहे हैं - कमजोर, थके हुए, बेचेन, ढीले और सुस्त। उनके चेहरे के हाव-भाव भी समान थे। इन्हें कोई बीमारी नहीं थी, लेकिन ये स्वस्थ भी नहीं थे। इनके बीच जो समान लक्ष्ण थे, उसके लिए मेडिकल किताबों में न तो कोई शब्द था, न कोई दवा थी। इसलिए सैएल ने मैकेनिकल इंजीनिरयरिंग से शब्द उधार लिया- स्टेस या तनाव। अब तक तनाव मशीन के दो पुर्जों के बीच होता था, जिसके कारण वे एक-दूसरे को खींचकर रखते थे।


शरीर में कुछ स्ट्रेस हार्मोन होते हैं, जिनकी सहने की क्षमता बहुत कम होती है। पुराने दिनों में उतनी क्षमता काफी होती थी। मशीनीकरण के साथ जीने की रफ्तार बढ़ गई और तनाव के कारण बढ़ते चले गये। तनाव की अनुभूति शरीर से उठकर मन के तल पर आ गई। अब छोटी-छोटी बात पर लोग तनाव में आ जाते हैं।


इसका निदान ओशो के पास है। वह कहते हैं कि तनाव आपके विकास के लिए अच्छा है। तनाव का अर्थ इतना ही है कि शरीर में कुछ अतिरिक्त ऊर्जा पैदा हुई है, उसका सकारात्मक उपयोग करें। तनाव को दबाने की बजाय कुछ शारीरिक व्यायाम करें, नृत्य करें या दौड़ लगाएं। अतिरिक्त ऊर्जा रूपांतरित होगी, तो आप अधिक फुर्तीले हो जायंगे।