श्री रामकृष्ण के शिष्य थे- नाग महाशय। पेशे से चिकित्सक- अंदर से संन्यासी-वैसे गृहस्थ। गंगा किनारे एक बाबा जी व चेले को अपने गुरु श्री रामकृष्ण को गाली देते सुना तो तैश में आ गए। बलवान थे। पहले मारने को तैयार हो गए। फिर सोचा-यह गलत है ।
प्रार्थना की - प्रभु! आप में शक्ति है। उनके मन में भी श्रद्धा का संचार कर दो। सोचा यदि मेरी भक्ति सच्ची है तो ये शीघ्र ही रामकृष्ण के भक्त बन जाएँ। शाम होते-होते वे दोनों आकर रामकृष्ण के चरणों में गिर गए। क्षमा माँगने लगे। भक्तवत्सल प्रभु रामकृष्ण ने उन्हें क्षमा कर दिया।
एक दिन परमहंस ने आँवला माँगा। आँवले का मौसम नहीं था। नाग महाशय ने कहा- गुरु की इच्छा जगी है, तो जरूर कहीं-न-कहीं आँवले होंगे। जंगल में एक पेड़ के नीचे ताजे आँवले रखे मिले। उठाकर ले आए।
रामकृष्ण बोले- मुझे मालूम था- तू ही लेकर आएगा। तेरा विश्वास सच्चा है।