कुरूपता और स्वर की मधुरता (प्रेरक कथा)

संगीतकार गाल्फर्ड के पास उसकी एक शिष्या अपने मन की व्यथा कहने गयी कि वह कुरूप होने के कारण संगीत मंच पर जाते ही यह सोचने लगती है कि दूसरी आकर्षक लड़कियांे की तुलना में उसे दर्शक नापसंद करेंगे और हंसी उड़ाएंगे। यह विचार आते ही वह सकपका  जाती है और गाने की जो तैयारी घर से करके ले जाती है, वह सब गड़बड़ा जाती है। घर पर वह मधुर गाती है, इतना मधुर, जिसकी हर कोई प्रशंसा करें, पर मंच पर जाते ही उसे न जाने क्या हो जाता है कि हक्का-बक्का होकर वह अपनी सारी प्रतिभा गंवा बैठती है।
गाल्फर्ड ने उसे एक बड़े शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि देखते हुए गाने की सलाह दी और कहा-वस्तुतः वह कुरूप नहीं, जैसी कि उसकी मान्यता है। फिर स्वर की मधुरता और कुरूपता का कोई विशेष संबंध नहीं है। जब वह भावविभोर होकर गाती है, तब उसका आकर्षण बहुत बढ़ जाता है और उसमें कुरूपता की बात कोई सोच भी नहीं सकता। वह अपने मन में से हीनता की भावना निकाले। सुंदरता के अभाव को ही न सोचती रहे, वरन स्वर की मधुरता और भावविभोर होने की मुद्रा से उत्पन्न आकर्षण पर विचार करे और अपना आत्मविश्वास जगाएं। लड़की ने यह किया और आरंभिक दिनों में जो सदा सकपकाई हुई रहती थी और कुछ आयोजनों में जाने के बाद एक प्रकार से हताश-सी हो गयी थी, नया साहस और उत्साह इकट्ठा करने पर उसने बहुत प्रगति की और फ्रांस की प्रख्यात गायिका 'मेरी वुडनाल्ड' के नाम से विख्यात हुई।


-अखण्ड ज्योति से साभार