इलायची की सुगंध हमेशा के लिए...


इलायची सुगंधित, तीखा स्वाद लिए ज़ायकेदार, महंगा मसाला है. इसे पकवानों को सुगंधित करने व मुख शुद्धि के रूप में उपयोग किया जाता है. इसके अलावा अतिथि सत्कार,धार्मिक अनुष्ठान, पान, खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने में इसके व्यापक उपयोग हैं. रसोई घर में बने पकवान, मिठाइयां इसकी तीखी खुशबू व महक से और अधिक स्वादिष्ट व आकर्षक हो जाते हैं.


इलायची अदरक जाति का एक पौधा है, जिसे संस्कृत में 'तीक्ष्णगंधा' व वनस्पतिशास्त्र में 'एलिटेरिया कराडमम' कहते |


इलायची का उल्लेख ईसा पूर्व १५५० ई. का पाया जाता है. ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में इसका प्रयोग बवासीर, मोटापा, पीलिया व मूत्र संबंधी रोगों में मिलता है. आयुर्वेद के अनुसार इलायची शीतल, तीक्ष्ण, मुख शुद्ध करने वाली, पाचन वर्धक, में रुचिवर्धक होती है. यह बदहज़मी, श्वांस, खांसी, बवासीर, खुजली, पीलिया, वात, बस्तिरोग, क्षय, पथरी, सुजाक व हृदयरोग में लाभदायक है.


प्राचीन समय में रोम व यूनान में इलायची का इत्र बनाया जाता था. १३ वीं शताब्दी के बाद इलायची का इस्तेमाल सुगंधित मसालों के रूप में काफी बढ़ गया था. - इसका मूल उत्पत्ति स्थान भारत माना जाता है.यहां विश्व उत्पादन की ५ प्रतिशत उपज होती है. केरल में सबसे ज्यादा इलायची का उत्पादन होता है. उसके बाद कर्नाटक व तामिलनाडु का स्थान है. मैसूर, मंगलोर व लंका में भी काफ़ी उत्पादन होता है. इलायची का पौधा २ से ४ मीटर तक ऊंचा व सदा हरा-भरा रहने वाला होता है. इसकी पतियां बरछी जैसी नुकीली आकार की आधा मीटर तक लंबी होती हैं. इसका पौधा बीज व जड़ दोनों से लगाया जा सकता है. समुद्री हवा व छायादार भूमिं इसके लिए आवश्यक है. इसकी खेती पहाड़ी मैदानों व ढलवा ज़मीन पर की जाती है. ३-४ वर्ष बाद ही पौधे पर फल आने शुरू हो जाते हैं व ६-७ वर्षों तक फल नगते हैं. १०-१२ वर्ष तक पौधे का जीवन रहता है फिर पौधा नष्ट होने लगता है. अप्रैल-मई इलायची के पौधे पर सफ़ेद फूल आने लगते हैं व गुच्छों के रूप में फल अगस्त से लेकर अप्रैल तक आते हैं. ये सूखे फल या फलियां ही इलायची होती हैं. पहले लगने वाले फल आकार में बड़े व गुणों से भरपूर रहते हैं. एक पौधे पर लगभग २००० के करीब फल लगते हैं. जो सूखने पर करीब २५० ग्राम होते हैं.


साधारणतया इलायची हवा में ही सुखाई जाती है. इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इसका हरा रंग काला न पड़ जाये. क्योंकि अधिक हरी इलायची में अधिक खूशबू होती है व कीमत ज्यादा मिलती है. जितने धीरे धीरे यह सूखती है उतनी ही बढ़िया रहती है. जल्दी सूखने से उसकी फली फूट जाती है जिससे उसकी कीमत कम हो जाती है. सूखी इलायची का रंग हल्का पीला या हरा-पीले रंग का होता है. जल्दी सुखाई इलायची काली पड़ जाती है. इलायची आधा सेंटीमीटर से लेकर २ सेंटीमीटर तक लंबी होती है.. छोटी आकारवाली प्रायः गोल होती है,जबकि बडे आकार की इलायची लंबी व तिकोनी फली जैसी होती है. इसके अंदर दानों की छः पंक्तियां रहती हैं, हर किनारे पर दानों की दो पंक्तियां. बढ़िया इलायची में उसके दानों क वजन इलायची के वज़न क करीब ७० प्रतिशत तक रहते है. दानें भी करीब ३ मिलीमीट लंबे, २ मिलीमीटर मोटे कोणदार होते हैं. इनका रंग पीले रंग से लेकर गहरा लालसा होता है. जिनके ऊपर झिल्ली-सी चढ़ी रहती है."


इन दानों में एक विशेष प्रकार का उड़नशील तेल (एसेंसियल ऑयल) रहता। जो ३.५ से ८ प्रतिशत तक होता है. यह बहुत सुगंधित बिना की का या हल्के पीले रंग का होता है. इस के अलावा दानों में २० प्रतिशत नमी, ४२ प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, २० प्रतिशत रेशे. २ प्रतिशत कैलशियम, २.२ प्रतिशत पोटेशियम व अल्प मात्रा में लोहा, फास्फोरस आदि होता है.


बड़ी इलायची आयुर्वेद के अनुसार इसमें गुण तो छोटी इलायची जैसे ही होते हैं,परंतु स्वाद में जरा कम स्वादिष्ट होती है. इसका फल गहरा कत्थई रंग का लगभग २ सेंटीमीटर का होता है व इसके दानें छोटी इलायची के दानों से कुछ बड़े होते हैं. बड़ी इलायची


भारत तथा नेपाल के पहाडी | स्थानों में उगाई जाती हैं.


भारत से इलायची का काफ़ी हिस्सा अरब व खाड़ी के देशों में निर्यात किया जाता है. वे इसे गर्म देश में खून को ठंडा बनाये रखने के लिए व उत्तेजक के रूप में इस्तेमाल करते हैं. अरब देशों में इलायची का 'कहवा' - बनाया जाता है, जिसमें २० से ३० प्रतिशत कॉफी व ८० प्रतिशत इलायची मिलाते हैं.