बुरादे को काटना (प्रेरक कथा)

जीवन में अक्सर ऐसे अवसर आते हैं जब जरा सी लापरवाही भारी पड़ जाती है। हम मन ही मन खीझते रहते हैं, भुनभुनाते रहते हैं।, सोचते हैं काश वह काम दूसरी तरह से करते तो अच्छा होता।


विश्वप्रसिद्ध लाइफ कोच डेल कारनेगी ने सफलता प्राप्त करने से पहले से ऐसी कई ठोकरें खाईं। फिर उन की मुलाकात साँडर्स से हुई। जिन्होंने अपने एक अध्यापक की बात से व्यवहारिक जीवन का पाठ समझाया। एक दिन वे क्लास में दूध की एक बोतल लेकर आए और मेज के किनारे रख दी। फिर वे उठे और हम सब के सामने बोतल को सिंक में फेंक दिया और चिल्ला कर बोले गिरे हुए दूध पर रोओ मत, दूध और बोतल नष्ट हो चुके हैं। दुनिया की कोई ताकत इसे वापस नहीं ला सकती। थोड़ा ध्यान दिया जाता तो यह बच सकता था पर देर हो गई। अब इसे भुला कर अगला काम करना चाहिए।


इसी प्रसंग में 'फिल्डेफिया बुलेटिन' के सम्पादक का कथन उल्लेखनीय है। एक बार काॅलेज के स्नातकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने पूछा-तुम में से कितने लोग हैं जिन्होंने आरी से लकड़ी काटी है? बहुत से छात्रों ने हाथ खड़े किए। फिर पूछा-कितनों ने बुरादे को काटा? इस बार कोई हाथ नहीं उठा। फिर उन्होंने बहुत पते की बात कही-जाहिर है तुम बुरादे को काट नहीं सकते।


 वह तो पहले से ही कटा हुआ है। अतीत पर भी यही लागू होता है। यानी जो बीत चुका है उसके बारे में चिंता करना बुरादे को दोबारा काटना जैसा है। सो आँसू क्यों बहाए जाएं। हम से गलतियां हो जाती हैं। मूर्खता के काम कर लेते हैं तो क्या हुआ? कौन नहीं करता? इसलिए पिछला सब भुलाकर नई लकड़ी काटों।