बुजुर्गों का अकेलापन दूर करने का प्रयास !


77 वर्षीय रमेश विज ने साल भर से भी कम समय में इन्होंने विभिन्न व्हाटऐप समूहों में अब तक करीब दो हजार लोगों को अपनी मुहिम से जोड़ लिया है। सभी बुजुर्गों को व्हाटसएप का प्रयोग करना जरूर सीख लेना चाहिये ताकि जीवन जीने का अनुपम आनन्द वे प्राप्त कर सकें - सम्पादक 


सतहत्तर साल पहले मेरा जन्म अविभाजित भारत के पंजाब की राजधानी लाहौर में हुआ था। विभाजन के बाद मेरा परिवार शिमला आ गया। चण्डीगढ़ बसने से पहले भारतीय पंजाब की राजनीति शिमला से ही नियंत्रित होती थी। इस तरह मेरी पढ़ाई शिमला और चण्डीगढ़ में हुई। सोलह साल पहले रिटायर होने से पहले मैंने अनेक सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों में बतौर इंजीनियर काम किया। इन कम्पनियों में बीएसएनएल तथा कोटा का परमाणु रिएक्टर शामिल रहे। ऋषिकेश की जानी-मानी दवा कम्पनी आईडीपीएल मेरे करियर की आखिरी कम्पनी रही। रिटायरमेंट के बाद का आराम मुझे कुछ दिन तक बहुत अच्छा लगा। लेकिन बीतते वक्त के साथ मुझे एहसास होने लगा कि मैं जबर्दस्ती आराम कर रहा हूँ, जबकि शारीरिक तौर पर मैं पूरी तरह स्वस्थ था। मेरे दिमाग में एक ख्याल आया कि मेरे जैसे न जाने कितने वृद्ध होंगे, जेा रिटायरमेंट के बाद इसी समस्या से जूझ रहे होंगै। सिर्फ मेरे जैसे ही नहीं, बल्कि वे वृद्ध भी अकेलेपन का सामना कर रहे होंगे, जो किसी वजह से जीवन की नकारात्मकता से घिरे हुए हों। उनकी नकारात्मक बातें सुनने के लिए उनके परिवार वालों के पास समय नहीं रहता। मेरे मन के किसी कोने में एक ख्वाहिश ने जन्म ले लिया कि मैं किसी तरह ऐसे वृद्धों को एक मंच पर लाऊ, जहां वे एक दूसरे की मद्द से जिंदगी का आखिरी पड़ाव खुशी-खुशी व्यतीत करें। इस विचार को मैंने अपने एक दोस्त से साझा किया। संयोग से मेरे दोस्त का बेटा विपुल प्रकाश विभिन्न कम्पनियों में निवेश करने वाला सफल उद्यमी निकला। विपुल को मेरी बातों ने प्रभावित किया और उसने एक तकनीशियन कृतार्थ मल्होत्रा की मदद से मुझे दफ्तर सहित वे सारी चीजें मुहैया कराई, जिनकी मुझे अपने विचार जमीन पर उतारने के लिए जरूरत थी। 
 इसके बाद तो लगभग बंद हो चुकी मेरी जीवन रूपी गाड़ी फिर से चालू हो गई। कृतार्थ और मैंने मिलकर जुलाई 2017 से अपने सामाजिक उद्यम 'हम' से ऐसे लोगों को जोड़ना शुरू किया, जिन्हें हमारी जरूरत हो सकती थी। हमें खास सफलता तब मिली, जब दिल्ली के एक रिटायर्ड बैंककर्मी मिस्टर गुलिया जी हमसे जुड़े। हमें उनके करियर का अंदाजा था, इसलिए हमने एक नामी प्राइवेट वितीय कम्पनी से सम्पर्क करके गुलिया जी के अनुभवों का नियोजन करने का प्रस्ताव रखा। हमारी बात मान ली गई और गुलिया जी के लिए कम्पनी में एक खास पद का सृजन किया गया। कम्पनी को इससे फायदा हुआ और आगे चलकर गुलिया जी ने हम की मदद से अपने जैसे दिल्ली के तमाम पूर्व बैंकरों का एक समूह बना दिया। एक नई दुनिया बस चुकी थी और इसी नई दुनिया ने हमें प्रेरित किया और लोगों को अपने मंच से जोड़ने को। 
 आज सोशल मीडिया के माध्यम से हमसे दोनों तरह के रिटायर्ड वृद्ध जुड़ रहे है, वे भी जिन्हें कुछ काम के बदले पैसा की जरूरत है और वे भी, जिन्हें पैसे नहीं, बस नीरस अकेलेपन से मुक्ति चाहिए। ऐसे लोगों के लिए हम कई प्रकार के स्वयंसेवी कार्यक्रम चलाते हैं, जिसमें चिकित्सा, पर्यटन और अन्य सामाजिक गतिविधियां शामिल है। साल भर से भी कम सफर में हमने विभिन्न व्हाट्सऐप समूहों में अब तक करीब दो हजार लोगों को जोड़ लिया है। इनमें से करीब दो सौ लोग को काम भी मिल चुका है। हम दिल्ली के दायरे से निकलकर देश के बारह शहरों तक पहुंच चुके है और बहुत जल्द यह आंकड़ा बीस का हो जायेगा।