बकरी का दूध आरोग्य सम्पदा है !


गाय, भैस, बकरी आदि पशु जो वनस्पति खाते हैं, | उनके पाचन के बाद बचे हुए सार से दूध की उत्पत्ति होती है. यही दूध मनुष्य को जन्म से ही पोषण देता है. शरीर की वृध्दि और विकास दूध पर ही आधारित होती है. दूध अनेक बहुमूल्य गुणों से युक्त होता है. दूध पैष्टिक बल देने वाला, रसादि, सात धातुओं की वृध्दि करने वाला, बुध्दिवर्धक, व्यायाम से या अन्य परिश्रम से शरीर में आयी कमज़ोरी दूर करनेवाला होता है. दूध, बालकों से लेकर वृध्दों तक सबके लिए हितकर होता है..


गो दुग्ध को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इसके गुणों को देखा जाये तो यह ठीक है किन्तु जिस व्यक्ति की पाचन क्रिया अत्यधिक बिगड़ी हुई होती है और वह गाय के दूध को नहीं पचा सकता, उसके लिए बकरी का दूध लाभप्रद होता है. इस दूध की अपनी कुछ विशिष्ठताएं होती हैं. इसका मूल कारण बकरी की प्रकृति है. बकरी छोटे कद वाली होती है जिसके कारण उसके शरीर में अत्यधिक चर्बी |और अर्धपाचित अन्न का रस संचित नहीं हो पाता, परिणाम स्वरूप उसके दूध में चिकनाई, भारीपन और आम उत्पन्न करने वाले गुण नहीं होते. इन्हीं कारणों से गो-दुग्ध केवल वात-पित्त नाशक है जबकि भैस के दूध में भारीपन होता है इसलिए वह अग्निनाशक होता है जबकि बकरी का दूध तीनों दोषों का शमन करने वाला होता है. यह दूध शरीर में कफ, चर्बी इत्यादि की वृध्दि नहीं करता है. इतना ही नहीं, पेट की अग्नि को प्रदीप्त करके शरीर में चर्बी की वृध्दि को रोकता है, शरीर तथा मन में हल्कापन उत्पन्न करता है.


बकरी के दूध में इस विशिष्ठता का दूसरा कारण यह भी है कि बकरी कड़वे-कसैली वनस्पतियों का भक्षण करती है और चरने हेतु ऐसे-ऐसे - ऊबड़-खाबड़, ऊंचे-नीचे स्थानों पर जाती है, जिसके कारण उसका अच्छा व्यायाम हो जाता है, साथ ही वह अल्पमात्रा में जलपान करती है, इसलिए ही उसका दूध भारी नहीं होता क्षय रोगियों के लिए बकरी के दूध का सेवन अमृत समान है. इसके अलावा यह दूध ज्वर, दमा, खांसी, रक्तस्त्राव तथा अतिसार में उपयोगी होता है यह पानी जैसे जुलाब को रोक देता है पित्तप्रधान अतिसार में अनेक प्रयोजनों से इस दूध का प्रयोग लाभकारी है. बकरी का दूध बल की वृध्दि एवं वर्ण में भी सुधार करता है. बकरी के दूध को गर्म करके ठंडा करने के बाद इसमें मधु तथा शर्करा मिला कर पीना चाहिए एवं भोजन में भी प्रयोग करना चाहिए. पित्तप्रधान व अतिसार में मल निवृत्ति के बाद गुदा द्वार को धोने के लिए भी इसका प्रयोग करना चाहिए. इसका मुख्य कारण यह है कि पित्त और रक्तस्त्रावी अतिसारों में उष्ण तीष्णता के कारण गुदा द्वार पर सूजन वलालिमा की सम्भावना प्रायः रहती है अतएव उससे बचने के लिए दूध से गुदा भाग धोना लाभकारी है भोजनार्थ बकरी के दूध के प्रयोग का अर्थ यह है कि रोगी को दूध के साथ चावल खाने को देना चाहिए.


विभिन्न रोगों में बकरी के दूध का प्रयोग-


बकरी का दूध अनेक रोगों में उपयोगी होता है ज्वर में रोगी जब दाह और प्याससे पीड़ित हो तब इसका सेवन कराना चाहिए. रक्तपित्त रोग में, मुंह, नाक, कान मूत्रमार्ग या गुदा मार्ग से रक्तस्त्राव होता है, उस रक्तस्राव को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता है


चंद दिनों शुरू हुए अतिसार में काले तिल १-२ ग्राम लेकर उनकी चटनी बनाकर, उसके पांचवे भाग में शर्करा मिलायें. इसका दूध के साथ दिन में तीन या चार बार सेवन कराएं. इससे रक्तस्त्रावी अतिसार तत्काल शांत हो जाता है. .


अतिसार पीड़ित व्यक्ति को भोजन से पूर्व बकरी के दूध का ताज़ा मक्खन उचित मात्रा में दें. इसमें अर्धभाग शर्करा भी मिला दें और चौथाई भाग शहद मिला कर भी रोगी को दें.


बकरी के दूध से बनाये ताजे मक्खन तथा काले तिल के काले तिल निरन्तर सेवन से अथवा नागकेशर चूर्ण एवं मक्खन व शकर्रा के सेवन से रक्तस्त्रावी बवासीर शांत होती है


इस प्रकार बकरी के दूध से प्राप्त होने वाले दूध, घी, मक्खन आदि सभी पदार्थ साधारण अवस्था से लेकर भयंकर रोग की अवस्था में भी विशेष हितकारी होते हैं, इसलिए आयुर्वेदाचार्ये द्वारा बकरी के दूध को विशेष महत्व दिया गया है.


-आरोग्य संजीवनी से साभार