"आलोचनाओं" से अपना व्यक्तित्व "सवारें" !


अपने किए किसी भी काम की नकारात्मक प्रतिक्रिया किसी को भी अच्छी नहीं लगती। लेकिन सच तो ये है कि आलोचना हमारे लिए किसी न किसी रूप में फायदेमंद ही होती है। इससे हमें अपनी खामियों का पता चलता है, जिन्हें समय रहते दूर करके हम अपनी परफॉर्मेंस सुधार कर आगे बढ़ सकते हैं। तो अब गौर कीजिए कि पिछले दिनों आपको कितनी बार अपने किसी काम पर 'कोई खास नहीं' की टिप्पणी मिली और तब आपको कितना बुरा लगा?


आलोचना कैसे सहें?-


अच्छा यही है कि आलोचना को स्वस्थ भावना के साथ स्वीकार करके अपने काम में सुधार करने की आदत डाल ली जाए।


- सावधानी और सतर्कता के साथ सुनें। अगर कोई आपके प्रतिकूल टिप्पणी करता है, तो आपका उससे परेशान होने का मुख्य कारण उसे ध्यान से न सुनना होता है। होता ये है कि जैसे ही बॉस सुधार की बात करने लगता है, लोग उसे सुनना ही नहीं चाहते और उसे कुछ न कुछ जवाब देने के बारे में सोचना शुरू कर देते हैं। इससे मूल समस्या की उपेक्षा हो जाती है, गलती के दोहराव का खतरा बना रहता है।


- भावुक होने की ज़रूरत नहीं। अगर कोई आपकी गलती या खामी की तरफ इंगित करता है, तो इसे अन्यथा न लें। इसके बजाय अपने दिमाग का इस्तेमाल करके ठीक से विश्लेषण करें। भावनाओं को हावी होने का मौका नहीं देंगे, तो निष्पक्ष होकर अपने काम में सुधार नहीं कर पाएंगे। मनोभावनाओं को काबू में रखें।


- चुप न रहें, लेकिन ऐसा भी न हो कि अपना जरूरत से ज्यादा बचाव करने लगें। अगर आलोचना पर लाजवाब हो जाएंगे, तो आपका आत्मविश्वास डगमगा जाएगा और हो सकता आपकी सहनशक्ति भी जाती रहे। इसलिए किसी भी टिप्पणी को सुनने के बाद अपना दृष्टिकोण अवश्य सामने रखें, ज़रूरत हो तो और तफसील से जानकारी लें। इसके बाद सुधार का वादा करें।


- खुंदक न पालें। आलोचना को हमेशा के लिए अपने दिमाग में जगह देना ठीक नहीं। उसे शत्रुता बढ़ाने का मसला न बनाएं। इससे न ही मूड खराब रहेगा और इसका असर काम पर पड़ेगा, जो आपके हित में नहीं होगा।