एक बूढी माँ की सामान की लिस्ट (ह्रदयस्पर्शी कथा)

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एक दम्पती दीपावली की खरीदारी करने की हड़बड़ी में था। पति ने पत्नि से कहा, जल्दि करो, मेरे पास टाईम नहीं है। यह कह कर कमरे से बाहर निकल पड़ा। तभी बाहर लॉन में बैठी मां पर उसकी नजर पड़ी।
कुछ सोचते हुए वापस कमरे में आया और अपनी पत्नि से बोला, शालू तुमने मां से भी पूछा कि उनको दीवाली पर क्या चाहिए?
शालिनी बोली, नहीं पूछा! अब उनको इस उम्र में क्या चाहिए होगा यार, दो वक्त की रोटी और दो जोड़ी कपड़े.........इसमें पूछने वाली क्या बात है?
यह बात नहीं है शालू......मां पहली बार दीवाली पर हमारे घर में रूकी हुई हैं। वरना तो हर बार गांव में ही रहती हैं। तो.....औपचारिकता के लिए ही पूछ लेती।
अरे इतना ही मां पर प्यार उमड़ रहा है तो खुद क्यों नहीं पूछ लेते? झल्लाकर चीखी थी शालू...और कंधे पर हैंड बैग लटकाते हुए तेजी से बाहर निकल गयी।
सूरज मां के पास जाकर बोला,
मां, हम लोग दीवाली की खरीदारी के लिए बाजार जा  रहे हैं। आपकों कुछ चाहिए तो..
मां बीच में ही बोल पड़ी, मुझे कुछ नहीं चाहिए बेटा।
सोच लो मां, अगर कुछ चाहिए तो बता दीजिए.....
सूरज के बहुत जोर देने पर मां बोली, मैं लिखकर देती हूं। तुम्हें और बहू को बहुत खरीदारी करनी है, कहीं भूल न जाओं। कहकर सूरज की मां अपने कमरे में चली गयी। कुछ देर बाद बाहर आई और लिस्ट सूरज को थमा दी।....
सूरज ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए बोला, देखा शालू, मां को भी कुछ चाहिए था, पर बोल नहीं रही थी। मेरे जिद करने पर लिस्ट बना कर दी है। इंसान जब तक जिंदा रहता है, रोटी और कपड़े के अलावा भी बहुत कुछ चाहिए होता है।
अच्छा बाबा ठीक है, पर पहले मैं अपनी जरूरत का सारा सामान लूंगी। बाद में आप अपनी मां की लिस्ट देखते रहना। कहकर शालिनी कार से बाहर निकल
गयी।
पूरी खरीदारी करने के बाद शालिनी बोली, अब मैं बहुत थक गयी हूं, मैं कार में एसी चालू करके बैठती हूं, आप अपनी मां का सामान देख लो।
अरे शालू तुम भी रूको, फिर साथ चलते हैं, मुझे भी जल्दि है।
देखता हूं मां ने इस दिवाली पर क्या मंगाया है? कहकर मां की लिखी पर्ची जेब से निकालता है।
बाप रे! इतनी लंबी लिस्ट,.....पता नहीं क्या-क्या मंगाया होगा? जरूर अपने गांव वाले छोटे बेटे के परिवार के लिए बहुत सारे सामान मंगाये हांगे। और बनो श्रवण कुमार, कहते हुए शालिनी गुस्से से सूरज की ओर देखने लगी।
पर ये क्या? सूरज की आंखों में आंसू.......और लिस्ट पकड़े हुए हाथ सूखे पत्ते की तरह हिल रहा था.....पूरा शरीर कांप रहा था।
शालिनी बहुत घबरा गयी। क्या हुआ, ऐसा क्या मांग लिया है तुम्हारी मां ने? कहकर सूरज के हाथ से पर्ची झपट ली.....
हैरान थी शालिनी भी। इतनी पड़ी पर्ची में बस चंद शब्द ही लिखे थे....
पर्ची में लिखा था.......
बेटा सूरज मुझे दीवाली पर तो क्या किसी भी अवसर पर कुछ नहीं चाहिए। फिर भी तुम जिद कर रहे हो तो.......तुम्हारे शहर की
किसी दुकान में अगर मिल जाये तो फुरसत के कुछ पल मेरे लिए लेते आना.....ढलती हुई सांझ हूं अब मैं। सूरज, मुझे गहराते अंधियारे से डर  लगने लगा है, बहुत डर लगता है। पल-पल मेरी तरफ बढ़ रही मौत का देखकर.....जानती हूं टाला नहीं जा सकता, शाश्वत सत्य है...पर अकेलेपन से बहुत घबराहट होती है सूरज। तो जब तक तुम्हारे घर पर हूं, कुछ पल बैठा कर मेरे पास, कुछ देर के लिए ही सही बांट लिया कर मेरे बुढ़ापे का अकेलापन। बिन दीप जलाए ही रोशन हो जाएगी मेरी जीवन की सांझ। कितने साल हो गये बेटा तुझे स्पर्श नहीं किया। एक बार फिर से आ मेरी गोद में सर रख और मैं ममता भरी हथेली से सहलाऊं तेरे सर को। एक बार फिर से इतराए मेरा हदय मेरे अपनों को करीब, बहुत करीब पा कर...और मुस्करा कर मिलूं मौत के गले। क्या पता अगली दीवाली तक रहूं ना रहूं.......।
अपनों को करीब, बहुत करीब पा कर...और मुस्करा कर मिलूं मौत के गले। क्या पता अगली दीवाली तक रहूं ना रहूं.......।
पर्ची की आखिरी लाइन पढते-पढ़ते शालिनी फफक-फफक कर रो पड़ी।
ऐसी होती है मां.......
दोस्तो, अपने घर के उन विशाल हृदय वाले लोगों को, जिनको आप बूढ़े और बुढ़िया की श्रेणी में रखते हैं, वे आपके जीवन के कल्पतरू हैं। उनका यथोचित आदर-सम्मान, सेवा-सुश्रूत और देखभाल करें। यकीन मानिए, आपके भी बूढ़े  होने के दिन नजदीक ही हैं। उसकी तैयारी आज से ही कर लें। इसमें कोई शक नहीं, आपके अच्छे-बुरे कृत्य देर-सवेर आप ही के पास लौट कर आने हैं।

प्रस्तुति-संजय कुमार गर्ग